. जन-हित में सूचना तकनीक और दूरसंचार क्षेत्र की शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिन महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का मोदी ने संकल्प लिया है, उसके लिए संभवत: यह सर्वाधिक अनुकूल समय है
भले ही आप राजनैतिक आधार पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक हों या विरोधी, आप यह स्वीकार किए बिना नहीं रह सकेंगे कि-एक, उनके पास इनोवेटिव (नवोन्मेषी) विचारों की कमी नहीं है। दो, वह सरकार- प्रशासन की सीमाओं के बावजूद कुछ ठोस करने का संकल्प रखते हैं। और तीन, कारोबार से लेकर तकनीक जैसे परस्पर विविधतापूर्ण क्षेत्रों पर भी उनकी दृष्टि काफी हद तक स्पष्ट तथा संतुलित है।
ई-गवरनेंस और डिजिटल भारत का उनका सपना इनका मजबूत संकेत है। ऐसा नहीं है कि भारत के लिए ई- गवरनेंस, ई-प्रशासन, ई-शिक्षा और डिजिटल साक्षरता जैसे मुद्दे एकदम नए हों। हम इस मार्ग पर पिछले दो दशकों से चल ही रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के समय पर कंप्यूटरीकरण का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसकी स्वाभाविक परिणति मोदी के ई-गवरनेंस और डिजिटल भारत संबंधी व्यापक तंत्र के रूप में हो सकती है। इस लंबी अवधि में हम सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, आईटी की आधारभूत संरचनाओं, इंटरनेट आधारित सेवाओं, बाजार तथा सूचना तंत्र आदि के विकास में काफी आगे आ चुके हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में हमारे पास कुशल मानव संसाधनों की उपलब्धता अन्य देशों की तुलना में काफी अच्छी है। हालांकि ढांचागत विकास के मामले में आज भी चुनौतियां बरकरार हैं, जैसे-डिजिटल साक्षरता का अभाव, गांव-कस्बों में कंप्यूटरों की संख्या (पीसी पेनेट्रेशन) के कमजोर आंकड़े, ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमजोर रफ्तार आदि। गांव-कस्बों तक ई-गवरनेंस के लाभ पहुंचाने के संदर्भ में सिर्फ तकनीकी सीमाएं ही नहीं हैं, हमारी अन्य सीमाएं भी लक्ष्य को हासिल करने में रु कावट पैदा कर सकती हैं; जैसे- बिजली की समस्या, जिसके बिना गांव-देहात के लोगों का सरकारी ई-पण्रालियों के साथ संपर्क कर पाना दिक्कत-तलब होगा, निम्नतम स्तर पर सुविधाओं के संचालन के लिए मानव संसाधनों का अभाव, चुनौतीपूर्ण लक्ष्यों को हासिल करने में प्रशासनिक तंत्र का अनमनापन, जो स्वयं आज तक तकनीक के साथ उस किस्म का तालमेल नहीं बिठा पाया है, जिसकी आवश्यकता मोदी के ई-गवरनेंस विजन को साकार करने के लिए सामने आएगी।
जन-हित में सूचना तकनीक और दूरसंचार क्षेत्र की शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिन महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का संकल्प उन्होंने लिया है, उसके लिए संभवत: यह सर्वाधिक अनुकूल समय है। पहला, देश में आधी से अधिक संख्या 35 वर्ष तक की आयु के युवाओं की है, जो तकनीक के प्रति स्वाभाविक लगाव रखते हैं और उसे दिलचस्पी से देखते तथा प्रयोग करते हैं।
दूसरे, देश में मोबाइल फोन, टैबलेट और कंप्यूटरों का प्रसार तेज रफ्तार से हो रहा है और दूरसंचार सुविधाएं देश की तीन-चौथाई आबादी तक पहुंच चुकी हैं। मोबाइल फोन के मामले में हम अमेरिका को पीछे छोड़ चुके हैं और सिर्फ चीन से पीछे हैं। जब कनवरजेंस का कारवां एक के बाद एक मोर्चे फतह करता जा रहा हो तो टैबलेट और मोबाइल फोन, सेवाओं को मुहैया कराने और दोतरफा संवाद का महत्त्वपूर्ण माध्यम बन सकते हैं। मोदी मोबाइल गवरनेंस की भी बात कर चुके हैं, और देखा जाए तो देश ने पहले ही इसके लिए एक अच्छा-खासा आधार तैयार कर दिया है।
इंटरनेट उपभोक्ताओं के मामले में भी, यदि सरकार की प्राथमिकतां बदली नहीं तो, हम 2018 तक अमेरिका से आगे बढ़ सकते हैं, जब देश में लगभग 50 करोड़ इंटरनेट उपयोक्ता हो जाएंगे। यह अनायास नहीं है कि फेसबुक से लेकर गूगल और माइक्रोसॉफ्ट से लेकर ट्विटर तक के शीर्ष पदाधिकारी भारत को अपने विकास की धुरी के रूप में देख रहे हैं। अगर सरकार कंप्यूटरों के प्रसार पर फोकस करती है, तो तीन साल के भीतर हम अपनी एक-चौथाई आबादी को कंप्यूटरों से जोड़ने में सफल हो सकते हैं। गार्टनर के अनुसार भारत में आईटी से संबंधित आधारभूत सुविधाओं पर खर्च चार फीसद सालाना की गति से बढ़ रहा है। हमें इसे छह से आठ फीसद तक ले जाना होगा। भारतीय सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं के शीर्ष संगठन नैस्कॉम ने जिस अंदाज में मोदी की घोषणाओं का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया है, वह दिखाता है कि डिजिटल भारत और ई-गवरनेंस के उनके विजन में कितनी कारोबारी और विकासात्मक संभावनाएं छिपी हुई हैं। डिजिटल भारत परियोजना को इसी माह केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है। .
Content Courtesy : बालेन्दु शर्मा दाधीच सोशल मीडिया के जानकार
No comments:
Post a Comment